जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं है,
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं है,वो दिल नहीं है, दिल नहीं है, दिल नहीं है।
तुम ज़माने के हो हमारे सिवाय
हम किसी के नहीं, तुम्हारे हैं
वो छोटी-छोटी उड़ानों पे गुरूर नहीं करता
जो परिंदा अपने लिए आसमान ढूंढता है
मेरे बारे में कोई राय मत बनाना ग़ालिब,
मेरा वक्त भी बदलेगा तेरी राय भी...!
मैं तो इस वास्ते चुप हूं कि तमाशा न बने
और तू समझता है मुझे तुझसे गिला कुछ भी नहीं!
No comments:
Post a Comment