Mahabharat se bhi bhari
महाभारत से भी भारी
।। काँपते हॄदय से ।।
हे दयानिधे ! रथ रोको अब, क्यों प्रलय की तैयारी है ।
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।
नैना रोते रोते सूखे, अब नीर कहाँ इन आँखों में ।
परवाज पे जिनकी गर्व बड़ा, अब जान कहाँ इन पाँखों में ।।
अपने भी साथ नही अपने, जंग जीवन से यूँ जारी है ।
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।
हमने खुद को यूं बसा लिया, वैज्ञानिकता की बांहों में ।
अवरोध खड़े कर दिए बड़े, हर एक दूजे की राहों में ।।
धरती माता का दोहन तो, कर लिया गगन की बारी है ।
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।।
जिन मुश्किल से गुजर रहे, ये खेल हमारे अपने हैं ।
जीवन अनमोल बिका जिन पर, कुछ चंद सुखों के सपने हैं ।।
हर ओर तमस दिखता है अब, भय में हर रात गुजारी है ।
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।।
कितने परिचित कितने अपने, कितने आखिर यूँ चले गए ।
जिन हाथों में दौलत-संबल, सब क्रूर काल से छले गए ।
हे राघव-माधव-मृत्युंजय, पिंघलो ये अर्ज हमारी है ।
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।।🙏🙏🙏🙏
Mahabharat se bhi bhari
महाभारत से भी भारी🙏
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3 comments:
Is this a poem you have written?
Is this your own poem?
yes... this poem is written by me..
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